माँ दुर्गा शारदीय नवरात्र स्पेशल 2020 : भारत में केवल काशी में ही है इन देवी माँ स्कंदमाता का मंदिर
भारत के अलावा नेपाल में है। इन माता रानी का मंदिर
शारदीय नवरात्र में पांचवे दिन माता रानी के दर्शन की है मान्यता
नवरात्री की अधिष्ठात्री माँ दुर्गा का पांचवा स्वरुप स्कंदमाता
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

स्कंदमाता का यह नाम क्यों
भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
माँ स्कंदमाता का करुणामय अद्भुत स्वरूप
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।

नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है।
साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
माँ स्कंदमाता का मन्त्र -:
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
माँ स्कंदमाता की महिमा
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक् परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है। यह देवी विद्वानों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं है। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है।
माँ स्कन्द माता की उपासना का फल रूप में प्राप्त होने वाला महत्व
माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है।

स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
स्कंदमाता की कृपा पाने के लिए सरल एवं स्पष्ट श्लोक
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध’ चक्र में अवस्थित होता है।
काशी में स्थित माँ स्कंदमाता का इकलौता मंदिर
वाराणसी। शारदीय नवरात्री में पांचवे दिन स्कन्द माता के दर्शन – पूजन की मान्यता है। इन देवी का मंदिर भारत वर्ष में केवल वाराणसी में है। ऐसा मंदिर के मुख्य पुजारी का कहना है। भारत के अलावा नेपाल में भी है इन माता रानी का मंदिर। यह कब बना यह बताने वाला कोई नहीं। पुजारी बताते है की उनके दादा – परदादा भी यही कहते रहे की उनके दादा परदादा भी बस पूजन करते चले आ रहे है। इन देवी का उल्लेख कई धर्मग्रंथो में मिलता है।

यह मंदिर वाराणसी में जैतपुरा इलाके में स्थित है। धर्म नगरी काशी में इसी मंदिर को बागीश्वरी देवी मंदिर की मान्यता प्राप्त है। मंदिर के पुजारी गोपाल मिश्र बताते है कि स्कन्द माता का मंदिर पूरे भारत वर्ष में यही वाराणसी में ही है। इसके अलावा स्कन्द माता का मंदिर नेपाल में ही मिलेगा।
उन्होंने बताया कि जिन्हे संतान सुख नहीं होता वह इन माता का दर्शन – पूजन करे तो उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। इसके अलावा बच्चो और युवाओ की शिक्षा में आने वाली बाधा को भी माता रानी दूर करती है।
इस मंदिर के प्रथम तल पर स्कन्द माता का विग्रह है तो नीचे गुफा मे बागीश्वरी माता का विग्रह है । इसके आलावा सिद्धि विनायक का भी मंदिर इस परिसर में है।
बता दे कि इस मंदिर परिसर में शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि से माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत तीन दिनों तक पूजन अर्चन होता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक पधम पुरस्कार से सम्मानित आचार्य देवी प्रसाद द्धिवेदी के मुताबिक, जो साधक भगवती स्कंदमाता की उपासना करता है।
उसे दैहिक, देविक, भौतिक कष्ट नहीं होता है।