tour of pilgrimage sites why to make pilgrimage the scientific and universal importance or benefit of pilgrimage in Hindu sanatan Indian culture part-2
शायद आपने कभी सोचा भी नहीं होगा तीर्थ स्थलों के इन तथ्यों के बारे में – वैज्ञानिक एवं सार्वभौमिक तौर पर तीर्थो के उद्देश्य, महत्व अथवा लाभ –
शारीरिक महत्व अथवा लाभ
तीर्थो की स्थापना करने में हमारे तत्वदर्शी पूर्वजों ने बड़ी बुद्धिमता का परिचय दिया है ! जिन स्थानों पर तीर्थ स्थान स्थापित किए गए हैं ! वे जलवायु की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी हैं ! जिन सरिताओं का जल विशेष उपयोगी हल्का तथा स्वास्थ्यप्रद पाया गया है! तीर्थ स्थल उन्ही के तटों पर स्थापित किए गए हैं ! गंगा के तट पर सबसे अधिक तीर्थ हैं। कारण यह है कि गंगा का जल संसार की अन्य नदियों से अधिक उपयोगी है ! गंगा के जल में स्वर्ण, पारा, गंधक तथा अभ्रक जैसे उपयोगी खनिज पदार्थ मिले हैं ! जिनके सम्मिश्रण से गंगाजल एक प्रकार की दवा बन जाता है ! जिसके प्रयोग से उदर रोग, चर्म रोग तथा रक्त विकार आश्चर्यजनक रीति से ठीक होते हैं ! कुष्ठ रोग को दूर करने की गंगाजल में महत्वपूर्ण क्षमता मौजूद है ! इसी प्रकार अन्य नदी सरोवरो में अपने-अपने गुण है ! इस गुणों की उपयोगिता का तीर्थों के निर्माण में प्रधान रूप से ध्यान रखा गया।

हमारे बुद्धिमान आचार्य द्वारा आमतौर पर अधिकतर तीर्थ और मंदिर ऐसी जगहों पर बनाए गए हैं! जहां का प्राकृतिक वातावरण हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। आजकल वायु परिवर्तन के लिए लोग पहाड़ों पर जाया करते हैं ! रोगी और दुर्बल लोगो को डॉक्टर लोग वायु परिवर्तन के लिए स्वास्थ्यवर्धक, खुले ,हरे भरे ,पवित्र स्थानों में भेजते हैं और वहां कुछ समय ठहरने के लिए सलाह देते हैं ! यह दृष्टिकोण तीर्थों में पहले से ही रखा गया है कि जहां की भूमि, वनस्पति, ऋतू आदि के आधार पर ‘स्वास्थ्यप्रद वायु’ पाई जाती है ! वहां पर तीर्थ स्थापित किए गए हैं ! इन स्थानों पर कुछ समय निवास करके वहां की जलवायु का सेवन करने से तीर्थ यात्रियों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है ! इस कारण इस तथ्य से प्रभावित होकर विचारशील आचर्यों ने यहां पर तीर्थ बना दिए हैं !

तीर्थ यात्रा में पैदल चलने का विशेष महत्व बताया गया है ! पैदल चलना शरीर को सुगठित करने और नाड़ी समूह तथा मांसपेशियों को बलवान बनाने के लिए आवश्यक उपाय हैं ! आयुर्वेद शास्त्रों में प्रमेह चिकित्सा के लिए नियमित पैदल चलने का आदेश दिया गया है ! अधिक चलने से जंघाओं की मांसपेशियों का अच्छा व्ययाम होता है और वे परिपुष्ट हो जाती है ! ढीली नस नाड़ियो की संकुचन शक्ति शिथिल पड़ जाने के कारण वीर्य नीचे की और स्त्रावित होता रहता है और स्वप्नदोष ,प्रमेह, पेशाब के साथ चिकनाई जाना, शीघ्रपतन, बहुमूत्र आदि रोग उतपन्न हो जाते है ! इस व्यथा से छुटकारा पाने के लिए कटि प्रदेश तथा जंघाओं के नाड़ी समूह तथा मांसपेशियों को ठीक करना पड़ता है ! आयुर्वेद की सम्मति में इसका अच्छा उपचार नियमित रूप से पैदल चलना है ! जिससे कटि पेडू और जंघाएँ सुदृढ हो जाए तीर्थ यात्रा इस उद्देश्य को बड़ी अच्छी तरह पूरा करता है ! पैदल तीर्थ यात्रा करने से स्वस्थ व्यक्तियों का शरीर का गठन ऐसा अच्छा हो जाता है। जिसके कारण शरीर में प्रमेह आदि रोगो का आक्रमण नहीं हो पाता है और जिन्हें मूत्र आदि रोग होते हैं ! उन्हें उन व्यथाओं से बिना दवा दारू में धन लुटाये ,स्थाई रूप से लाभ हो जाता है !

कई तीर्थो में परिक्रमा लगाने का विधान है। जो कि दंडवत रूप मे और पैदल चलकर भी होती है ! दंडवत अर्थात पेट के बल परिक्रमा करना आंतों के रोगों के लिए उपयोगी है ! तिल्ली एवं जिगर भी इससे मजबूत होते हैं और उनके बहुत से विकार दूर हो जाते हैं !

पर्वतों पर बहुत ऊंचे कुछ तीर्थ बनाए गए हैं ! ऊंची चढ़ाई चढ़ने से हड्डियों की संधिया अथवा जोड़ मजबूत होते हैं तथा गठिया होने का भय नहीं रहता ! फेफड़ों को मजबूत बनाने के लिए ऊंचा चढ़ना और नीचे उतरना असाधारण रूप से उपयोगी है ! पहाड़ी प्रदेशों के रहने वाले व्यक्ति जिन्हें ऊंचा चढ़ना और नीचे उतरना पड़ता है ! चौड़ी छाती वाले होते हैं ! जिस कारण तपेदिक जैसे फेफड़ों के रोग से ग्रसित नहीं होते !
कंधे पर गंगाजल की कावड़ रखकर शिवरात्रि पर यात्रा की जाती है ! जिससे कंधे की नसों पर दबाव पड़ता है ! इन नसों का मूलाधार चक्र की नाड़ियो से संबंध है ! अतःगुदा स्थान पर उसका प्रभाव होता है और बवासीर जैसे रोगों की संभावना नष्ट हो जाती है !
तीर्थ यात्रा के दौरान नंगे पैर चलने का और भजन कीर्तन में तालिया बजने का भी विधान हमारे आचार्यो के द्वारा बनाया गया है ! इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक कारण यह हो सकता है कि हमारे हाथो और पैरो में हमारे शरीर के एक्यूप्रेशर पॉइंट होते है ! जो कि नंगे पैरो चलने से और हाथो द्वारा तालिया बजाने से दबते है ! जिस कारण भी हमारे शरीर के बहुत से रोगो में लाभ होता है और स्वास्थ्य प्राप्त होता है !

मानसिक महत्व अथवा लाभ -: मंदिरो में घंटियों की आवाज नकारात्मक सोच को खत्म करती है। वास्तु के अनुसार मंदिरों की बनावट ऐसी होती है! जहां सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हमेशा बना रहता है। मंदिर में आने वाले भक्तों के नकारात्मक विचार नष्ट होते हैं और सोच सकारात्मक बनती है। इसी वजह से मंदिर या तीर्थ पर जाने से हमारे मन को शांति मिलती है। शांत मन और सकारात्मक सोच के साथ किए गए काम में सफलता मिलती है।

शैक्षणिक महत्व अथवा लाभ -: यात्राओं से हमें नए-नए अनुभव होते हैं, हमारी स्मृतियां बढ़ती है। हमारी सोच बढ़ती है। हम अनुभवी शिक्षित होते हैं। यदि आप यात्रा करेंगे तो पता चलेगा कि आपके शहर, गांव या कस्बे में क्या नहीं हो रहा है। जैसे कुछ लोग अमेरिका से सीखकर यहां आते हैं और अपने शहर को कुछ नया देते हैं। इसी तरह कुछ लोग अपना ज्ञान लेकर विदेश जाते हैं और उन्हें वहां कुछ नया देते हैं।
सांस्कृतिक महत्व अथवा लाभ -: यात्राओं से हम यह देख पाते हैं कि धरती कैसी है, प्रकृति कैसी है, शहर, गांव और कस्बें कैसे हैं। यात्राओं से हमें भिन्न-भिन्न संस्कृति और धर्म की भाषा, भूषा और भोजन का पता चलता है ! यात्राओं से ही हम जान सकते हैं कि लोग कैसे हैं, उनके विचार कैसे हैं और अतत: हम यह निर्णय ले सकते हैं कि हम कैसे हैं। तीर्थ यात्रा के दौरान व्यक्ति अपने देश और धर्म को जानने का प्रयास करता है। तीर्थ पुरोहित, पंडा से मिलकर अपने कुल खानदान को जानता है। ऐसी भी बहुत सारी बाते हैं जो आपके शहर में नहीं हो रही है।
आर्थिक महत्व अथवा लाभ -: बहुत से लोग एक शहर छोड़कर दूसरे शहर घूमते रहते हैं। इससे उन्हें पता चलता है कि कहां क्या मिलता है और कितने में मिलता है। ऐसा करके वे अपने शहर में वह व्यापार शुरू कर सकते हैं जो कि उनके शहर में नहीं होता है।

आध्यात्मिक महत्व अथवा लाभ -: तपस्वी, मनस्वी, साधु, संत आदि के आश्रमों में रुकने का मौका मिलता है। उनके आश्रम में नहीं ठहरते हैं तो उनसे मिलने का मौका मिलता है ! जिसके चलते मानसिक लाभ मिलता है ! धर्म के गूढ़ रहस्यो का बोध होता है और जीवन की बहुत सी समस्याओ का निदान भी होता है ! आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशक्त होता है। तीर्थ यात्रा करने से व्यक्ति में खुद के बारे में, लोगों के बारे में समझने की बुद्धि का विकास तो होता ही है साथ ही उसे अपने जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य भी पता चलता है। अक्सर लोग जीवन के अंतिम पड़ाव में तीर्थ यात्रा पर जाते हैं लेकिन जो जवानी में गया समझो उसने ही सबकुछ पाया। वही परिपक्व और अनुभवी व्यक्ति है।

अन्य महत्व अथवा लाभ
दार्शनिक महत्व अथवा लाभ -: दार्शनिक महत्व यह भी है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र किसी न किसी तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह परिक्रमा ही जीवन का सत्य है। व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे प्रतीक को निर्मित किया गया। भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है।
मित्रो ऐसा लगता है कि ये पोस्ट कुछ अधिक बड़ी हो रही है ! इस कारण मै तीर्थ यात्रा के अन्य विषयो पर अपनी अगली पोस्ट मेँ वर्णन करूंगा !इसी पोस्ट के भाग – 3 मेँ,
तीर्थ यात्रा करने की परंपराएँ अथवा नियम,
तीर्थ यात्रा करने का वास्तविक तरीका , किस तरह करे तीर्थ यात्रा ,
तीर्थ यात्रा करने का कितना मिलेगा आपको फल एवं
अन्य कुछ बाते !
आपसे अंत मेँ निवेदन वही कि यदि आपको मेरी इस पोस्ट मेँ कुछ कमी अथवा त्रुटि दिखाई दी हो तो मुझे अवश्य कमेंट बॉक्स अथवा मेल के माध्यम से बताने का कष्ट करे और मै अपनी सर्वप्रथम पोस्ट किस तीर्थ स्थान के बारे मै लिखू तथा मै अपनी पोस्ट और ब्लॉग को बेहतर कैसे बनाऊ आप अपना अमूल्य सुझाव अवश्य दे !
गलती के लिए क्षमा
धन्यवाद्
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तीर्थ स्थलों की यात्रा, तीर्थ यात्रा क्यों करें तीर्थ यात्रा करने के नियम अथवा मान्यताये और तीर्थ यात्रा करने से किसको मिलता है कितना फल भाग 3